बड़ौदा खुर्द में जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे विद्यार्थी सिर्फ पुल नहीं, सुरक्षा पर सवाल, ग्रामीणों ने की पुल बनाने की मांग

बड़ौदा खुर्द में जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे विद्यार्थी

सिर्फ पुल नहीं, सुरक्षा पर सवाल, ग्रामीणों ने की पुल बनाने की मांग

विद्यार्थियों के साहस और जोखिम का प्रतीक

कवर्धा खबर योद्धा ।। जिले के सहसपुर लोहारा ब्लॉक के ग्राम बड़ौदा खुर्द के विद्यार्थी हर दिन शिक्षा की तलाश में अपनी जान जोखिम में डालते हैं। गांव को जोड़ने वाली नदी पर पुल नहीं होने के कारण स्कूली विद्यार्थी और ग्रामीण मजबूरी में उफनती नदी पार करते हैं। बीते 24 घंटों से लगातार हो रही तेज बारिश ने नदी के जलस्तर को इतना बढ़ा दिया है कि अब हर सुबह स्कूल पहुंचना बच्चों के लिए खतरे से खेलने जैसा हो गया है। किताबों से भरा बस्ता, हाथों में छाता और सिर पर उम्मीद — यही है इन बच्चों की दिनचर्या, जो हर दिन बहते पानी में संघर्ष के साथ अपनी पढ़ाई का रास्ता तय करते हैं।

 

पुल का अभाव बना जोखिम का कारण

 

गांव से होकर बहने वाली यह नदी बरसात के दिनों में हमेशा उफान पर रहती है। नदी पर पुल न होने की वजह से विद्यार्थी, महिलाएं और बुजुर्ग सभी को नदी पार करनी पड़ती है। शुक्रवार की सुबह कई विद्यार्थी स्कूल जाने निकले तो पानी के तेज बहाव के कारण नदी किनारे फंस गए। हालात इतने गंभीर थे कि ग्रामीणों ने रस्सियों और डंडों की मदद से बच्चों को एक-एक कर नदी पार कराया। यह दृश्य जितना खतरनाक था, उतना ही प्रशासनिक उदासीनता पर सवाल खड़ा करने वाला भी।

 

ग्रामीणों की हिम्मत ने टाली बड़ी दुर्घटना

गांव के लोगों का कहना है कि हर साल बारिश के मौसम में यह समस्या बढ़ जाती है। शुक्रवार को जब विद्यार्थी नदी पार करने पहुंचे, तब तेज बारिश से पानी का स्तर अचानक बढ़ गया। विद्यार्थी डर के कारण किनारे खड़े रहे। तभी कुछ ग्रामीणों ने अपनी जान जोखिम में डालकर उन्हें नदी पार कराया। गनीमत रही कि कोई अनहोनी नहीं हुई। ग्रामीणों ने बताया कि वे कई बार जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से पुल निर्माण की मांग कर चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी ने इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दिया।

कई बार उठाई गई मांग, लेकिन कार्रवाई शून्य

पुल निर्माण की मांग को लेकर ग्रामीणों ने मनरेगा और लोक निर्माण विभाग को कई बार आवेदन दिए। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी स्थिति से अवगत कराया गया, लेकिन अब तक न कोई सर्वे हुआ और न ही निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। बारिश के दिनों में यह नदी इतनी उफन जाती है कि आवागमन पूरी तरह ठप हो जाता है। छोटे वाहनों के लिए रास्ता बंद हो जाता है, और किसी बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाना हो तो ग्रामीणों को कई किलोमीटर लंबा वैकल्पिक रास्ता अपनाना पड़ता है।

 

विद्यार्थियों की शिक्षा पर पड़ा असर

लगातार बारिश और पुल के अभाव से बच्चों की पढ़ाई सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। नदी पार करने में खतरा देखते हुए कई अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं। जो बच्चे जाते भी हैं, वे भीगकर पहुंचते हैं, उनकी किताबें और कॉपियां खराब हो जाती हैं। कई बार उन्हें नदी किनारे घंटों इंतजार करना पड़ता है, जब तक कि पानी का बहाव थोड़ा कम न हो जाए।

ग्रामीणों का आरोप — चुनावी वादे सिर्फ भाषणों में

गांव के निवासी रामनाथ साहू बताते हैं, “हर चुनाव में नेता आते हैं, पुल बनाने का आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव बीतते ही सब भूल जाते हैं। अब तो बच्चों की जान हर दिन दांव पर लगी रहती है।” वहीं महिला समूह की सदस्य मंगला बाई कहती हैं, “हम रोज बच्चों को नदी पार कर स्कूल भेजते हैं, लेकिन डर बना रहता है। अगर कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा ?

सिर्फ पुल नहीं, सुरक्षा पर सवाल

बड़ौदा खुर्द की यह समस्या केवल अवसंरचनात्मक कमी नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की कमी का भी उदाहरण है। यहां शिक्षा तक पहुंचना विद्यार्थियों के साहस और जोखिम का प्रतीक बन गया है। हर दिन बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई के अधिकार को जी रहे हैं।

जितेन्द्र राज नामदेव

एडिटर इन चीफ - खबर योद्धा

error: Content is protected !!