शरद पूर्णिमा-आश्विन महीने की इस पूर्णिमा को ‘शरद पूनम’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं
शरद पूर्णिमा-आश्विन महीने की इस पूर्णिमा को ‘शरद पूनम’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं,
शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी भूमिलोक पर भ्रमण करने के लिए आती हैं, इसलिए इसे कोजागर पूर्णिमा कहते हैं
शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग रचाया था रास
हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। आश्विन महीने की इस पूर्णिमा को ‘शरद पूनम’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं, जो कि शरद ऋतु के आने का संकेत है। इसके कोजागर के नाम से भी जाना जाता है।श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी बताते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग रास रचाया था इसलिए इसे रास पूर्णिमा कहते हैं। वहीं दूसरी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी भूमिलोक पर भ्रमण करने के लिए आती हैं, इसलिए इसे कोजागर पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन रात पर खुले आसमान के नीचे चांद की रौशनी में खीर रखने का विधान है।
शरद पूर्णिमा की तिथि और चंद्रोदय का समय
इस साल शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 16 अक्तूबर को रात 8 बजकर 40 मिनट पर होगा। पूर्णिमा तिथि का समापन 17 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 55 मिनट पर होगा। शरद पूर्णिमा के दिन 16 अक्टूबर को चंद्रोदय का समय शाम 5 बजकर 7 मिनट का रहेगा।
शरद पूर्णिमा को खीर क्यों रखी जाती है
श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी बताते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं के साथ चमकता है। इसके अलावा कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी में कुछ ऐसे तत्व मौजूद होते हैं, जो हमारे शरीर और मन को शुद्ध करके एक पॉजिटिव ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणें अमृतमयी होती हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को दूध, चावल की खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों से इस मिठाई में अमृत जैसे औषधीय गुण आ जाते हैं। इस दिन दूध, चावल की खीर बनाकर, एक बर्तन में रखकर उसे जालीदार कपड़े से ढक्कर चांद की रोशनी में रखा जाता है। इसके बाद अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में श्री विष्णु को उस खीर का भोग लगा कर सेवन किया जाता है और परिवारजनों में बांटा जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन क्या करें
श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे ने बताया कि चंद्रोदय के समय चंद्रमा को जल चढ़ाएं और मंत्रों का जाप करें। देवी लक्ष्मी की पूजा करें और धन के लिए प्रार्थना करें।
घर में दीपक जलाएं, इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आएगी। देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। धार्मिक ग्रंथ पढ़ें।
जरूरतमंदों को दान करें।
शरद पूर्णिमा के दिन न करें ये काम
नकारात्मक विचारों को अपने मन में न आने दें।
किसी से विवाद न करें।
क्रोध न करें।
आपको झूठ नहीं बोलना चाहिए।
इन बातों पर विशेष ध्यान दें
श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी ने आगे बताया कि शरद पूर्णिमा के दिन भूलकर भी तामसिक भोजन न करें। साथ ही इस दिन लहसुन और प्याज का सेवन भी वर्जित है। इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें और काले कपड़े ना पहने। चमकीले सफेद कपड़े पहनें तो बेहतर रहेगा।
श्री शंकराचार्य शिष्य
पण्डित देव दत्त दुबे
सहसपुर लोहारा-कवर्धा