December 23, 2024

धर्म नगरी कवर्धा में कांवड़ यात्रा 1989 से हुआ प्रारंभ इस सावन माह में हो जायेंगे 36 वर्ष पूर्ण

1989 की तस्वीर

1989 की तस्वीर

धर्म नगरी कवर्धा में कांवड़ यात्रा 1989 से हुआ प्रारंभ
इस सावन माह में हो जायेंगे 36 वर्ष पूर्ण
कबीरधाम जिले की एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक क्रिया कलाप अमरकंटक कांवरी यात्रा विगत 35वर्षों से चल रही
1989 की तस्वीर
1989 की तस्वीर
कवर्धा खबर योद्धा।। सावन महीना आते ही चहुँओर बोल बम के नारे गूंजने लगते हैं,हर तरफ भगवा वस्त्र पहने हुए शिवभक्तों की टोलियां नाचती गाती नजर आती हैं।श्रावण मास भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय माह माना जाता है  । चातुर्मास भी इसी समय होता है जब शिव ही कर्ता धर्ता होते हैं क्योंकि श्रीहरि विष्णु जी योगनिद्रा में होते हैं।सनातन संस्कृति का एक सुंदर और मोहक दृश्य श्रावण माह में दिखाई पड़ते है जिसे हम कांवरी यात्रा के नाम से जानते हैं।
कांवड़ यात्रा का इतिहास
 मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़ मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था, इसी के बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है।
सुल्तानगंज की तस्वीर
सुल्तानगंज की तस्वीर
             आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे। भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था।
            एक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब महादेव ने हलाहल विष का पान कर लिया था, तब विष के प्रभावों को दूर करने के लिए भगवान शिव पर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया गया था। ताकि विष के प्रभाव को जल्दी से जल्दी कम किया जा सके। सभी देवता मिलकर गंगा जी से जल लेकर आए और भगवान शिव पर अर्पित कर दिया। उस समय सावन मास चल रहा था। मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई थी।
             इस यात्रा को लेकर कुछ नियम भी हैं जो बेहद कठिन होते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया अपनी कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है. इसके अलावा बिना नहाए हुए इसको छूना पूरी तरह से वर्जित है. कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़िया मांस, मदिरा या किसी प्रकार का तामसिक भोजन को ग्रहण करना पर्णतः वर्जित माना गया है. इसके अलावा कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे भी नहीं रख सकते हैं.
कांवड़ यात्रा के प्रकार
      शास्त्रों के अनुसार कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के तीन प्रकार बताए गए हैं. पहली है सामान्य कांवड़ यात्रा इसमें कांवड़िया अपनी जरूरत के हिसाब से और थकान के मुताबिक जगह-जगह रुककर आराम करते हुए इस यात्रा को पूरा कर सकता है. दूसरी है डाक कांवड़ (Dak Kanvar) इस यात्रा में कांवड़िया जब तक भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं कर लेता है तब तक लगातार चलते रहना होता है. इस यात्रा में कांवड़िया आराम नहीं कर सकता है. तीसरी होती है दांडी कांवड़ इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िया गंगा के किनारे से लेकर जहां पर भी उसे भगवान शिव का जलाभिषेक करना है वहां तक दंड करते हुए यात्रा करनी होती है. इस यात्रा में कांवड़िये को एक महीने से भी ज्यादा का समय लग सकता है।  कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे।
कवर्धा में कांवरी यात्रा का इतिहास
 धर्म नगरी कवर्धा के राजपुरोहित परिवार के विद्वान, पर्यावरणविद,गौसेवक,समाजसेवी गोलोक  वासी पंडित अर्जुन प्रसाद शर्मा के द्वारा जन कल्याण एवम विश्व कल्याण हेतु सन 1989में “मां कालीशंकर बोल बम समिति” की स्थापना की गई। तत्पश्चात बुधवार 2अगस्त सन 1989श्रावण शुक्ल प्रतिपदा तिथि को सात सदस्यों के साथ पतित पावनी मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से नर्मदा जल भरकर 160किमी की कठिन एवम रोमांचक यात्रा कर नदी नालों पहाड़ की ऊंचाइयों और घाटियों को पार करते बोल बम का नारा लगाते हुए फोंकनदी के मध्य स्वयंभू जालेश्वर महादेव डोंगरिया एवम कवर्धा नगर के संकरी नदी के तट पर प्राचीन सिद्धपीठ पंचमुखी बूढ़ा महादेव में रविवार 6अगस्त श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि को जलाभिषेक कर यात्रा का समापन किया।
 प्रथम कांवरी यात्रा दल में स्व.अर्जुन प्रसाद शर्मा के नेतृत्व में स्व.शंकरलाल कश्यप,गणपत लाल साहू, छेदन लाल चौबे,रामकिशोर शर्मा, पुन्नी लाल साहू,एवम नरेंद्र ठाकुर ने पूरे भक्तिभाव से यात्रा की। कांवरी यात्रा का उद्देश्य शास्त्रीय और पौराणिक विधि से श्रद्धा पूर्वक पवित्र जल लाकर जनकल्याण एवम स्व कल्याण के लिए शिवजी का अभिषेक करना था।
              उनके कुशल नेतृत्व में 1989से 1998 तक अमरकंटक से कवर्धा तक अनवरत कांवरी यात्रा निकाली गई।सन1999से उनके निर्देशानुसार  कवर्धा के सभी देवालयों से बोल बम कांवरी यात्रा प्रारंभ की गई जो आज विस्तारित होकर पूरे कबीरधाम जिले के अनेकों ग्रामों से अमरकंटक तक  निकल रही है।मां काली बोल बम समिति ठाकुर पारा निरंतर35वर्ष से एवम मान संतोषी बोल बम समिति 25वर्षो से निरंतर यात्रा कर रही हैं।
तब से जिले में सैकड़ों बोलबम समितियां अमरकंटक से नर्मदा का पवित्र जल लाकर बूढ़ा महादेव में जलाभिषेक करती हैं।कुछ वर्ष पूर्व अर्जुन शर्मा जी के द्वारा 700कांवरियों का जत्था अमरकंटक प्रस्थान किया था।एक अनुमान के अनुसार श्री अर्जुन शर्मा जी की प्रेरणा से अब तक 40हजार कांवरिए यात्रा में जा चुके हैं।आज की तिथि में सिमगा, बेमेतरा, गंडई, थान खमरिया,दाढ़ी से हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक करने कांवरी यात्रा करके बूढ़ा महादेव आते हैं।
श्री अर्जुन शर्मा जी ने अपने जीवन काल में श्री राधा माधव गौशाला छपरी की स्थापना,सड़कों किनारे हजारों वृक्षारोपण,कलयुग केवल नाम अधारा को जीवंत करते हुए बूढ़ा महादेव में चौबीस घंटे लगातार श्रीराम नाम संकीर्तन 10 मार्च सन 1994महाशिवरात्रि की पावन तिथि से प्रारंभ किया था अब तक वहअनवरत चल रहा है।
आदित्य श्रीवास्तव
                   राष्ट्रपति पुरस्कृत सेवा निवृत्त व्याख्याता
                   सदस्य जिला पुरातत्व समिति कवर्धा
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जितेन्द्र राज नामदेव

एडिटर इन चीफ - खबर योद्धा

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