कवर्धा में आकाशीय बिजली से तीन की मौत, गांव में पसरा मातम

कवर्धा में आकाशीय बिजली से तीन की मौत, गांव में पसरा मातम
एक किशोरी झुलसी जो अब खतरे से बाहर
जंगल और खेत में हुई दो दर्दनाक घटनाएं, अब भी परंपरा के भरोसे जान बचाने की कोशिश
जंगल गई दो महिलाओं की मौके पर हुई मौत
कवर्धा खबर योद्धा।। कबीरधाम जिले के क्षेत्र अंतर्गत कुकदूर थाना के बाहपानी गांव में मंगलवार को दो बैगिन महिलाएं — तिहरीबाई पति ज्ञानसिंह बैगा (40 वर्ष) और रामबाई पति भगतसिंह बैगा (34 वर्ष), जंगल में चरोटा भाजी तोड़ने गई थीं। देर शाम तक घर न लौटने पर परिजनों ने तलाश शुरू की और बुधवार सुबह दोनों का शव खम्हार टिकरा पहाड़ी के जंगल में मिला। पुलिस ने पंचनामा कार्रवाई कर शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। गग्रामीणों के अनुसार, तेज बारिश के साथ गिरी बिजली ने उन्हें मौके पर ही मौत के घाट उतार दिया।
खेत से लौट रही दो किशोरियां चपेट में, एक की मौत
बोड़ला थाना क्षेत्र के मुंडघुसरी जंगल स्थित चटवाटोला में दो किशोरियां — रामयति उर्फ रामप्यारी (17) और प्रसदिया बाई (17), खेत से रोपा लगाकर लौट रही थीं। रास्ते में अचानक मौसम बदला और आकाशीय बिजली गिरी। रामप्यारी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि प्रसदिया बाई गंभीर रूप से झुलस गई। दोनों किशोरियां बैगा समुदाय से थीं और बेहद गरीब परिवारों से संबंध रखती थीं।
घायल किशोरी की हालत अब खतरे से बाहर
गंभीर रूप से झुलसी प्रसदिया बाई को पहले ग्रामीणों ने कोदो अनाज के ढेर में दबाया। यह आज भी कई ग्रामीण इलाकों में मान्यता है कि ऐसा करने से झुलसे शरीर को ठंडक मिलती है। बाद में उसे बोड़ला स्वास्थ्य केंद्र और फिर जिला अस्पताल रेफर किया गया, जहां डॉक्टरों ने उसकी हालत को फिलहाल खतरे से बाहर बताया है। समय पर इलाज न मिलने से उसकी स्थिति और बिगड़ सकती थी।
हर साल दोहराई जाती है यही गलती
जिले में हर वर्ष आकाशीय बिजली से 10 से अधिक मौतें होती हैं, लेकिन न तो प्रभावी चेतावनी प्रणाली है, न ही जागरूकता अभियान। आज भी बिजली गिरने पर लोग वैज्ञानिक उपायों की बजाय परंपराओं और अंधविश्वासों पर भरोसा करते हैं। मोबाइल पर अलर्ट नहीं आता, न ही ग्राम पंचायतों के स्तर पर कोई प्रशिक्षण या पूर्व जानकारी दी जाती है।
क्या अब भी नहीं चेतेंगे?
तीन जानें चली गईं — दो महिलाएं और एक किशोरी, जबकि एक और किशोरी बाल-बाल बची। सवाल यही है कि कब तक हम विज्ञान से दूर और अंधविश्वास के करीब रहेंगे? क्या प्रशासन, समाज और पंचायतें मिलकर ग्रामीणों को जागरूक करेंगे या हर बरसात में मौत की यही पटकथा दोहराई जाती रहेगी? यह सिर्फ प्रकृति का कहर नहीं, हमारी लापरवाही और व्यवस्थागत विफलता की भी सजा है।