आज के दिन आकाश छोड़ धरती पर आते हैं देवता जाने देव दीपावली का सच – पण्डित देव दत्त दुबे
आज के दिन आकाश छोड़ धरती पर आते हैं देवता
जाने देव दीपावली का सच – पण्डित देव दत्त दुबे
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा आज 15 नवंबर को, संध्या काल में मंदिरों में करें दीप दान मनाएँ देव दीपावली का पर्व
कवर्धा खबर योद्धा ।। बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी यूं तो वर्ष के 12 महीने तीर्थयात्रियों, सैलानियों से भरी रहती है लेकिन देशी-विदेशी पर्यटकों को कार्तिक पूर्णिमा की विशेष रूप से प्रतीक्षा रहती है क्योंकि देव दीपावली के दिन असंख्य दीपकों की रोशनी से नहाए हुए काशी के घाट आसमान में टिमटिमाते तारों से नजर आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा की शाम जब लाखों दिए काशी की उत्तरवाहिनी गंगा किनारे एक साथ जलते हैं, तो रोशनी से सराबोर गंगा के घाट के घाट देवलोक के समान प्रतीत होते हैं।
पौराणिक मान्यता
श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी बताते हैं कि
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा से कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर नारायण अपने 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं। इसके अलावा एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुर नाम के असुर का वध करके उसके दुष्टों से काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं कर सजाया था।
कहा जाता है कि 1986 में काशी नरेश डा. विभूति नारायण सिंह ने देश की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने वाली पावन नगरी में देव दीपावली को भव्यता के साथ मनाना शुरु किया गया था जिसके बाद से यह लोकोत्सव जनोत्सव में परिवर्तित हो गया। कहते हैं कि दीपावली की शाम जब गंगा के अर्धचंद्राकार घाटों पर हजारों-लाखों दिए एक साथ जलते हैं तो यह पूरा क्षेत्र इनकी रोशनी से जगमगा उठता है।
देवताओं का महापर्व
ऐसी मान्यता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की पहली किरण इसी पावन काशी नगरी की धरती पर पड़ी थी। परंपराओं और संस्कृतियों से रची बसी काशी की देश दुनिया में पहचान बाबा विश्वनाथ, गंगा और उसके पावन घाटों से है।
यहां के लोगों की सुबह हर हर गंगे के साथ शुरू होती है तो शाम उसी मोक्षदायिनी गंगा के तट पर प्रतिदिन होने वाली आरती जय मां गंगे के साथ खत्म होती है। श्रावण में शिवपूजन और गंगा तीरे होने वाली शाम की आरती के बाद यदि कोई पर्व लोगों को इस शहर की ओर आकर्षित करता है तो वह देव दीपावली ही है।
बता दें कि काशी के घाटों में मनाया जाने वाला इस देव दीपावली पर्व की लोकप्रियता आज देश-विदेश तक पहुंच चुकी है। देव दीपावली के दिन महिलाएँ प्रात: भोर में कार्तिक पूर्णिमा स्नान कर नदी में, सरोवर में, देवालयों में, घरों में दीप प्रज्वलित करतीं हैं फ़िर संध्या काल में मंदिरों में महिला पुरुष सभी एक साथ घड़ी घंटे की सुमधुर धुन के साथ आरती करते हुए मंदिरों में 108 दीपक 365 दीपक लखेसरी बाती यानि 01 लाख दीप बत्ती प्रज्वलित कर पूर्णिमा के अवसर पर देव दीपावली का पर्व हर्ष से मनाते हैं।
श्री शंकराचार्य शिष्य
पण्डित देव दत्त दुबे
सहसपुर लोहारा-कवर्धा