माता कंकाली काली मंदिर के सामने जब हुई थी खुदाई तो इतने निकले अस्त्र , शस्त्र की देख कर हैरान हो जाएंगे आप खदाई के बाद बन गया तालाब वर्ष में एक बार दशहरा के दिन होते हैं शस्त्रों के दर्शन
माता कंकाली काली मंदिर के सामने जब हुई थी खुदाई तो इतने निकले अस्त्र , शस्त्र की देख कर हैरान हो जाएंगे आप
खदाई के बाद बन गया तालाब
वर्ष में एक बार दशहरा के दिन होते हैं शस्त्रों के दर्शन
रायपुर खबर योद्धा विद्या भूषण दुबे ।। वैसे तो रायपुर में मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं और उनकी मान्यताएं भी अलग अलग हैं परंतु ब्राह्मण में कंकाली तालाब के पास स्थित मंदिर और शस्त्रागार इन सबसे अलग है। यह मंदिर पूरे वर्ष में केवल एक बार दशहरा के दिन ही खुलता है और इसी दिन मां कंकाली और उनके शस्त्र और अस्त्र के दर्शन होते हैं। शाम ढलते ही शस्त्रागार पूरे एक साल के लिए बंद हो जाता है। इस वर्ष भी दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी रही लोग मां काली के दर्शन के बाद उनके अस्त्र-शस्त्र के दर्शन करते रहे।
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम और रावण का युद्ध हो रहा था तब देवी युद्ध के मैदान में प्रकट हुई थीं और श्रीराम को अस्त्रों व शस्त्रों से सुसज्जित किया था। बस इसी मान्यता के चलते इनके शस्त्रागार का महत्व बढ़ जाता है और लोग इसके दर्शन मात्र के लिए दूर-दूर से आते हैं। इसके साथ ही एक और बात प्रचलित है जो इस मंदिर के प्रति उत्सुकता को और भी बढ़ा देती है। बताते हैं कि महंत कृपाल गिरी काे स्वप्न में देवी मां ने दर्शन दिए और उनकी मूर्ति स्थापित करने की बात कही, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जब बार-बार स्वप्न में देवी आईं तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और पुरानी बस्ती स्थित तत्कालीन श्मशान घाट की खोदाई कराई गई।
कहा जाता है कि इस खोदाई के दौरान जहां मां कंकाली की मूर्ति निकली, वहीं इतने ज्यादा शस्त्र और अस्त्र निकले की तालाब बन गया जो आज कंकाली तालाब के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं खोदाई में निकले शस्त्र और अस्त्र अब मंदिर के ही शस्त्रागार की शोभा हैं।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि मां कंकाली मंदिर का निर्माण शमशानघाट पर हुआ है। नागा साधुओं के तांत्रिक साधना केंद्र के रूप में इसकी ख्याति थी। नागा साधुओं की समाधि इसी के आसपास है। महंत कृपाल गिरि ने कंकाली मंदिर का निर्माण करवाया था। सत्रहवीं सदी में अर्थात रायपुर नगर की स्थापना से पूर्व इसे निर्मित माना जाता है।
मंदिर के भीतर नागा साधुओं के कमंडल, वस्त्र, चिमटा, त्रिशूल, ढाल, कुल्हाड़ी आदि रखे हुए है। शस्त्रों का पूजन इसी दिन होता है। कहते हैं कि महंत कृपाल गिरी स्वप्न की उपेक्षा करने से इतने आहत हुए कि उन्होंने मंदिर निर्माण के बाद वहीं समाधि ले ली।