April 18, 2025

छात्रा ने डॉक्टर से कहा सर, मैं चाहती हूँ कि मेरा बैग थोड़ा छोटा हो जाए… मेरे कंधे दुखते हैं बस्ते की बोझ में दबता बचपन , डॉक्टर भी दे रहे चेतावनी

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छात्रा ने डॉक्टर से कहा सर, मैं चाहती हूँ कि मेरा बैग थोड़ा छोटा हो जाए… मेरे कंधे दुखते हैं

बस्ते की बोझ में दबता बचपन , डॉक्टर भी दे रहे चेतावनी

 हर महीने 15 से अधिक विद्यार्थी पहुंच रहे पीठ और कंधे  दर्द का लेकर अस्पताल 

कवर्धा खबर योद्धा ।।  बस्ते के बोझ से अब बच्चे हो रहे परेशान कहते कुछ नहीं पर समस्या बन रही विकराल । आज के दौर में बदलते समय के साथ ही अब स्कूल का बैग भी इतना भारी हो गया हैं कि बच्चे उठा भी नहीं पा रहे है । पर शिक्षा भी जरूरी है । अब बच्चे क्या करे क्या न करे । कैसे मिले इन्हें दर्द से निदान बस्ते की वजन से हो रहे परेशान ।

ज्ञात हो कि 

स्कूल बैग का भार अब छात्र-छात्राओ की हड्डियों पर सीधा असर कर रहा है। एक तरफ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कहती है कि छात्र-छात्राओ के बस्ते हल्के हों, तो दूसरी ओर हकीकत यह है कि कवर्धा जिले के निजी और सरकारी स्कूलों में बच्चों के पीठ पर पुस्तक , कापी का बोझ लगातार बढ़ते जा रहा है। अब ये केवल शैक्षणिक बोझ नहीं रह गया, बल्कि चिकित्सकीय चिंता का भी विषय बन गया है। शहर के डॉक्टरों की माने तो हर महीने 15 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां बच्चों में भारी बैग की वजह से कंधे, पीठ और गर्दन में दर्द की शिकायतें पाई जाती हैं।

छात्र-छात्राओ की चुप्पी से बड़ा कोई संकेत नहीं कवर्धा के एक निजी स्कूल की 4 कक्षा की छात्रा ने डॉक्टर से कहा कि सर, मैं चाहती हूँ कि मेरा बैग थोड़ा छोटा हो जाए… मेरे कंधे दुखते हैं लेकिन मैं कुछ नहीं कहती। यह एक मासूम की सच्चाई है, जिसे अनदेखा करना अब असंवेदनशीलता होगा।

 

डॉक्टरों ने किया  अलर्ट – रीढ़ की हड्डी पर सीधा असर

रूपजीवन हॉस्पिटल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल जैन का कहना है कि  हर महीने हमारे पास 15 से अधिक अलग-अलग स्कूलों से आने वाले बालक-बालिकाओ में पीठ दर्द, कंधे में अकड़न या हाथों में सुन्नपन जैसी समस्याएं पाई जाती हैं। जिनकी उम्र महज 6 से 14 वर्ष के बीच होती है। ऐसे मामलों में अक्सर यह देखा गया है कि भारी बैग उनकी रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियों पर असंतुलित दबाव डालता है, जिससे लंबी अवधि में स्कोलियोसिस, पोश्चर डिफॉर्मिटी जैसी स्थितियां विकसित हो सकती हैं।

बालक-बालिकाओ की हड्डियाँ इस उम्र में नाजुक होती हैं

डॉ. शशि कपूर परिहार बाल रोग विशेषज्ञ परिहार हाॅस्पिटल कवर्धा कहते हैं, बालक-बालिकाओ की हड्डियाँ इस उम्र में नाजुक होती हैं। ज्यादा वजन उठाने से उनका शारीरिक विकास प्रभावित होता है। कई बार बच्चे मन की बात नहीं कह पाते लेकिन उनका झुका हुआ चलना, चिड़चिड़ापन और लगातार पीठ या कंधे पकड़ना यह संकेत देता है कि वे असहज हैं।

 

मांसपेशीय जकड़न और जोड़ों के खिंचाव जैसी समस्याएं 

मासूमों को बचाना अब जरूरी जिले के जाने-माने चंद्रायन हॉस्पिटल कवर्धा के फिजियोथैरेपिस्ट डॉ.सरोज निर्मलकर कहती हैं कि एक बार शरीर में झुकाव आ जाने के बाद उसे ठीक करना आसान नहीं होता। हम इन दिनों छोटी उम्र के बालक-बालिकाओ में भी मांसपेशीय जकड़न और जोड़ों के खिंचाव जैसी समस्याएं देख रहे हैं, जो पहले बड़ों में दिखाई देती थीं।

जिम्मेदारी किसकी, पालकों को भी जागरूक होना होगा

जिला शिक्षा अधिकारी ने  कहा कि हमने सभी स्कूलों को स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि बैग का वजन एनईपी 2020 के मानकों के अनुसार तय किया जाए। इसका पालन सुनिश्चित करने के लिए निरीक्षण भी किया जाएगा। लेकिन यह केवल स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी नहीं है। पालकों को भी सजग होना होगा। बालक-बालिकाएं घर से लेकर स्कूल तक क्या ले जा रहे हैं, यह देखने की जिम्मेदारी उनकी भी है। हर सप्ताह बैग की जांच करें, गैरजरूरी सामग्री निकालें, इन्हे हल्के बैग चुनने के लिए प्रेरित करें।

 

शिक्षा का उद्देश्य दर्द नहीं छात्र-छात्राओ के जीवन में उजाला लाना है

समझ की जरूरत शिक्षा का उद्देश्य छात्र-छात्राओ के जीवन में उजाला लाना है, दर्द नहीं। यह समय है जब समाज को मिलकर यह समझना होगा कि भारी किताबें ही शिक्षा का पर्याय नहीं हैं। मन का बोझ कम करके ही ज्ञान को आत्मसात किया जा सकता है।

क्या करें स्कूल प्रबंधन

रोटेशनल टाइम टेबल – सप्ताह में विषयों का संतुलन करें ताकि एक दिन में अधिक किताबें न ले जानी पड़ें।

 

डिजिटल विकल्प – जहां संभव हो, वहां टैबलेट या स्मार्ट क्लास का प्रयोग हो।

स्कूल लॉकर – स्कूलों में लॉकर की सुविधा हो, जिससे रोजाना किताबें लाना आवश्यक न हो।

 

छात्र-छात्राओ की चुप्पी से बड़ा कोई संकेत नहीं कवर्धा के एक निजी स्कूल की 4 कक्षा की छात्रा ने डॉक्टर से कहा कि सर, मैं चाहती हूँ कि मेरा बैग थोड़ा छोटा हो जाए… मेरे कंधे दुखते हैं लेकिन मैं कुछ नहीं कहती। यह एक मासूम की सच्चाई है, जिसे अनदेखा करना अब असंवेदनशीलता होगा।

 

 

 

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जितेन्द्र राज नामदेव

एडिटर इन चीफ - खबर योद्धा

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